प्रेमचंद्र उत्तर कहानी
प्रेमचंद्र के बाद हिंदी कहानी कई मायनों में प्रेमचंद्र के यथार्थवादी चित्रण का बहूयामी में प्रसार करती हुई दिखाई देती है| इस युग में दो अस्पष्ट धाराएं दिखाई देती है-एक प्रगतिशील एवं मार्क्सवादी धारा का नेतृत्व यशपाल कर रहे थे, तो दूसरी मनोविश्लेषण वादी धारा जिसका नेतृत्व इलाचंद्र जोशी, जैनेंद्र और अज्ञेय रहे थे| ध्यान देने की बात है कि प्रेमचंद की कहानियों में समाजवाद एवं व्यक्तिवादी धारा दोनों ही दिखाई देती है लेकिन, प्रबलता समाजवादी या यथार्थवाद का अधिक है उसी युग में व्यक्तिवादी धारा भी विकसित होती है| जिसका नेतृत्व जयशंकर प्रसाद ने किया प्रेमचंद के बाद दो स्पष्ट धारा यथार्थवादी एवं मनोविश्लेषण के रूप में बट जाती है| यशपाल प्रेमचंद के सामाजिक यथार्थ को मार्क्सवादी दृष्टिकोण से प्रस्तुत करते हैं| वह अपनी कहानियों में सामाजिक शोषण, विषमता, अन्याय को विषय बना कर कहानियों को लिखते हैं इसके माध्यम से भी सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, जीवन के संघर्ष, मूल्य एवं नैतिकता के खोखले पन को उजागर करते हैं उन्होंने नैतिकता, धर्म, मर्यादा के खोखले पन पर तीव्र आघात किया| उनकी कई कहानियों में व्यंग के स्वर भी दिखाई देते हैं इसके कारण कहानी की स्थूलता समाप्त हो जाती है| और कहानी के सूक्ष्म संगठित व्यक्तित्व प्राप्त हो जाती है उनकी प्रमुख कहानियों में -कर्मफल, फूल की चोरी, आदमी का बच्चा, परदा, फूलों का कुर्ता, करवा का व्रत प्रमुख है| इस दृष्टिकोण से कहानियां लिखने वाले अन्य कहानीकार नागार्जुन, रांगे राघव, भैरव प्रसाद गुप्त प्रमुख है| रंगे राघव की कहानियां में विषय बंगाल का अकाल, देश का विभाजन, संप्रदायिकता, मजदूर की हड़ताल, बेरोजगारी, भुखमरी आती है| इन कहानियों के द्वारा वे सामाजिक यथार्थ को ना केवल उद्घाटित करते हैं बल्कि, पाठकों में भी संघर्ष की चेतना पैदा करते हैं| इस प्रकार भैरव प्रसाद गुप्त ग्रामीण एवं शहरी परिवेश को आधार बनाकर मार्क्सवादी चेतन युक्त कहानियों को लिखते हैं| इनकी प्रमुख कहानियां सपने का अंत, सिविल लाइन का कमरा, ऐसी आजादी रोज रोज आदि है|
इसी काल में जैनेंद्र और इलाचंद जोशी ने मनोवैज्ञानिक यथार्थ को केंद्र में रखकर अपनी कहानियों में मानव मन को चित्रित किया है और मानव मन की अटल गहराई में डूब कर उनके अंतः सत्य को उद्घाटित किया है| रचनाकारों पर फायड के मनोविश्लेषण बाद का प्रभाव है|इलाचंद जोशी की कहानियां फायड की सिद्धांत का साहित्यिक रूपांतरण प्रतीत होती है| मनुष्य की वासनाओं कुंठाओं, ईर्ष्या, अहंकार इलाचंद्र जोशी के कहानी के प्रमुख विषय है| और इनके माध्यम से वे मनुष्य के असली रूप को जो मनुष्य के भीतर है, उसे उद्घाटित करने का प्रयास करते हैं| यही कारण है, कि इलाचंद्र जोशी की भाषा में व्यापक परिवर्तन दिखाई देता है क्योंकि, उनकी भाषा मनुष्य के जटिल मनोविज्ञान को प्रकट करने के कारण दूरबोध प्रतीत होती है| और मिठास का तत्व गायब सा हो जाता है| उनकी शैली में प्रतीकात्मकता अधिक है इसकी कहानियां रोगी, परित्यक्ता, दुष्कर्मी, बदला आदि है| इनके द्वारा वर्णित पात्र मनुष्य का वह रूप है जो अत्यंत दुर्बल आत्मिक सीमित तथा कुंठित है|