यह हिंदी साहित्य का ब्लॉग है। जो की यूपीएससी के वैकल्पिक विषय हिंदी साहित्य के सिलेबस पर आधारित है। जो विद्यार्थी यूपीएससी की तैयारी कर रहे हैं तथा जो वैकल्पिक विषय के रूप में हिंदी साहित्य रखते है, उन सभी विद्यार्थियों के लिए उपयोगी सिद्ध होगा। धन्यवाद
Article
Showing posts with label आलोचना के प्रकार. Show all posts
Showing posts with label आलोचना के प्रकार. Show all posts
ऎतिहासिक एवं सांस्कृतिक आलोचना
इस आलोचना पद्धति में सबसे प्रमुख योगदान आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का है| ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक आलोचना में किसी कृति का मूल्यांकन इतिहास एवं संस्कृति की परंपरा एवं उसके व्यापक आधारों के आधार पर की जाती है| ऐतिहासिक आलोचना के अनुसार किसी मानव अथवा मानव समुदाय की चेतना विभिन्न प्रकार के परिवेश एवं देशकाल को बदलने के बावजूद भी किसी एक निश्चित परंपरा से जुड़ी हुई होती है| इसी प्रकार सांस्कृतिक आलोचना, व्यापक सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में किसी कृति का मूल्यांकन करता है| और संस्कृति के साथ उसके महत्व को जोड़कर देखता है, जैसे आचार्य द्विवेदी अपनी पुस्तकों "हिंदी साहित्य की भूमिका", "हिंदी साहित्य का आदिकाल", "कबीर" के माध्यम से उन्होंने हिंदी साहित्य की परंपरा को सामाजिक, सांस्कृतिक एवं जातीय तत्वों से जोड़ा और यह भी बताया कि वर्तमान हिंदी साहित्य हमारी सांस्कृतिक अस्मिता का प्रतीक भी है| द्विवेदी जी प्रथम आलोचक थे जिन्होंने कबीर को हिंदी साहित्य में प्रमुख स्थान दिलाया| द्विवेदी जी के अतिरिक्त विश्वनाथ प्रसाद मिश्र, परशुराम चतुर्वेदी आदि प्रमुख आलोचक इस श्रेणी में गिने जाते हैं|
Subscribe to:
Posts (Atom)
आलोचना को परिभाषित करें
आलोचना का तात्पर्य है, किसी वस्तु, रचना या कृति का मूल्यांकन करना| किसी भी रचना को समझने के लिए आलोचना को समझना आवश्यक है| बिना आलोचना...
-
यह साहित्य की वह विधा है जिसमें लेखक किसी स्थान की यात्रा का वर्णन करता है |और यह वर्णन रोचक होता है| वर्णन के दौरान लेखक किसी स्थान के इ...
-
आलोचना की शुरुआत वास्तविक तौर से आधुनिक या भारतेंदु युग से माना जाता है| यही वह समय है,जब साहित्य में विभिन्न विधाओं का जन्म हो रहा है| आल...
-
हिंदी साहित्य में विधाओं को ज्ञान इंद्रियों के द्वारा ग्रहण करने के आधार पर दो रूपों में विभाजित किया जाता है श्रव्य तथा दृश्य। ऐसी विधा ...