प्रारंभिक हिंदी कहानी

प्रारंभिक हिंदी कहानी

          प्रारंभिक हिंदी कहानी कौन-सी थी ?इसको लेकर इतिहासकारों में विवाद है| कुछ रचनाकारों का मानना है कि अचार्य रामचंद्र शुक्ल की 1903 में प्रकाशित कहानी "11 वर्ष का समय" हिंदी की पहली कहानी है| यह कहानी "सरस्वती पत्रिका" में प्रकाशित हुई थी| इसी प्रकार आचार्य रामचंद्र शुक्ल अपने समय की तीन कहानियों को छांटते हैं| किशोरी लाल गोस्वामी कृत "इंदुमती", "11 वर्ष का समय" और बंगमहिला द्वारा लिखित "दुलाईवाला"| इन तीनों कहानियों में से आचार्य रामचंद्र शुक्ल कहते हैं कि यदि मार्मिकता कि दृष्टि से देखा जाए तो, यदि "इंदुमती" किसी बंगला कहानी की छाया नहीं है तो यह हिंदी की पहली मौलिक कहानी है इसके उपरांत "11 वर्ष का समय" फिर "दुलाईवाला" का नंबर आता है| आचार्य रामचंद्र शुक्ल के पश्चात हिंदी की मौलिक कहानी कौन- सी है, इसको लेकर पुन: अनुसंधान शुरू हो जाता है| कुछ विद्वानों ने "इंदुमति" को Shakespeare  के "टेंपेस्ट" की छाया मानकर उसे मौलिक कहानी के दायरे से बाहर कर देते हैं| देवी प्रसाद वर्मा ने  वर्ष 1901  में "छत्तीसगढ़ मित्र" नामक पत्रिका में छपी  माधव  सप्रे की कहानी "एक टोकरी भर मिट्टी" को हिंदी की पहली कहानी माना है| जबकि डॉ बच्चन सिंह ने किशोरी लाल गोस्वामी की ही एक कहानी  "प्रणयनी परिणय" को हिंदी की पहली कहानी माना है| यह वह दौर है जब विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन भी शुरू हो गया है, इस दौर में ही कई कहानियां "सरस्वती पत्रिका" में प्रकाशित होती थी सरस्वती पत्रिका में ही किशोरीलाल कृत "इंदुमती" जो कि वर्णन प्रधान है........ "आपत्तियों का पहाड़ा" जोकि स्वप्न, कल्पना एवं रोमांच से भरपूर है| कार्तिक खत्री प्रसाद द्वारा लिखित "दामोदर राम की कहानी" आत्मकथा प्रधान है, प्रकाशित होती हैं| इसी दौर में हिंदी की पहली कहानी कुछ रचनाकारों ने 1915 में प्रकाशित "उसने कहा था" को माना है| यह कहानी चंद्रधर शर्मा गुलेरी ने लिखी थी मधुरेश ने लिखा है "उसने कहा था वस्तुतः हिंदी की पहली कहानी है जो कि शिल्प विधान की दृष्टि से हिंदी कहानी को एक झटके में प्रौढ़ बना देती है यह कहानी अपनी मार्मिकता और सघन गठन की दृष्टि से बेजोड़ है|" इसी दौर में कुछ कहानियां ऐसी भी प्रकाशित होती हैं जो कि अपनी संवेदना के कारण पाठकों के ह्रदय को भी  छूती है| यहां ध्यान देने की बात यह भी है कि भारतेंदु के पूर्व भी कई कहानियां प्रकाशित हुई थीं, जैसे- लल्लू लाल कृत "प्रेम सागर", सदल मिश्र कृत "नासिकेतोपाख्यान", इंशा अल्लाह खान कृत "रानी केतकी की कहानी"| सरस्वती पत्रिका में भी इसी दौर में, जिसे कुछ रचनाकारों ने प्रारंभ के 2 वर्ष का समय माना है, को आरंभिक हिंदी कहानी का काल का कहा है|
         इस काल की कहानियों में कथानक  स्थूल, विवरणात्मक और रहस्य रोमांच से भरपूर था| घटनाओं में चमत्कार मौजूद होते थे| इस काल की कहानियां अपरिपक्व और शिथिल भी मानी जाती है| इस काल के अन्य कहानी कारों में जैसे- भगवान दास कृत "प्लेग की चुड़ैल", केशव प्रसाद सिंह कृत "चंद्रलोक की यात्रा", गिरिजा दत्त वाजपेई कृत "पति का पवित्र प्रेम" जैसी कहानियों में वर्णनात्मकता, स्थूलता और आकस्मिकता दिखाई देती है| यहां ध्यान देने की बात है कि इस काल के कहानीकारों की कहानियों पर प्राचीन कथा साहित्य और लोक कथा साहित्य का पर्याप्त प्रभाव दिखाई देता है| कुछ इतिहासकारों ने तो यह भी कहा है कि प्रारंभिक हिंदी कहानियों में कच्चापन मौजूद है और शिल्प की दृष्टि से भी यह बचकानी लगती है| यह कहानियां जीवन के यथार्थ से दूर हैं इनमें आदर्श और कल्पना ही मौजूद है, यह आदर्श और कल्पना व्यक्ति को सम्मोहित करती हैं, लेकिन संघर्ष के लिए प्रेरित नहीं करती|

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