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प्रेमचन्द्रयुगीन कहानी

प्रेमचंदयुगीन कहानी



        प्रेमचंद हिंदी कहानी के स्तंभ माने जाते हैं| प्रेमचंद के आगमन से हिंदी कहानी को नया दशा एवं दिशा मिलती है| प्रेमचंद शुरुआती चरण में उर्दू में कहानियां लिखते हैं यह दौर 1907 का था, परंतु 1916 में उनकी कहानी "पंच परमेश्वर" सरस्वती पत्रिका में प्रकाशित होती है| यहीं से हिंदी कहानी की दिशा भी परिवर्तित हो जाती है| प्रेमचंद ने हिंदी कहानी को रहस्य, रोमांच, कल्पना और मनोरंजन के आसमान से उतारकर धरातल के यथार्थ से जोड़ दिया| प्रेमचंद ने पहली बार हिंदी कहानी को मनोवैज्ञानिक विश्लेषण जीवन के यथार्थ और स्वाभाविक वर्णन से जुड़ा उन्होंने हिंदी कहानी में राजा और ईश्वर के स्थान पर दलित, दीन और शोषित मनुष्य को नायक के रूप में प्रस्तुत किया| वह हिंदी कथा संसार को सामाजिक, राजनैतिक एवं आर्थिक यथार्थ से परिचित करवाते हैं| प्रेमचंद पहली बार हिंदी कहानी के केंद्र में मानवीय संवेदना के सूक्ष्म पहलुओं को लाकर खड़ा कर देते हैं और यही कारण है कि हिंदी कथा साहित्य में यह काल प्रेमचंद युग के नाम से जाना जाता है| इस युग में ही पहली बार हिंदी कहानी को स्वतंत्र व्यक्तित्व प्राप्त होता है| प्रेमचंद का युगबोध, यदि ध्यान से देखा जाए तो यह वह दौर है, जब भारत की राजनीति में गांधी जी का आगमन हो चुका है| भारत में सभी वर्ग स्वाधीनता की लड़ाई में खड़े हो गए हैं| सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक रूप से लोगों ने अपने शोषण का विरोध करना शुरू कर दिया है और युग का प्रभाव स्वाभाविक रूप से रचनाकार पर पड़ता है| यह वही दौर है जब वैश्विक स्तर पर प्रथम विश्व युद्ध लड़ा जाता है जिसके कारण बड़े पैमाने पर विनाश होता है| और लेखक यथार्थ और मनोविज्ञान के बीच मानवीय संवेदना को देख रहा होता है| प्रेमचंद ने अपनी आरंभिक कहानियों में गांधीजी के प्रभाव को ग्रहण किया है और इसी कारण कहानियों में शुरुआती चरण में आदर्शवादी और सुधारवादी कहानियां देखने को मिलती हैं| इन कहानियों में देशभक्ति, नैतिकता, सत्यनिष्ठा, कर्तव्य प्रणयता जैसे आदर्श देखने को मिलते हैं| इन कहानियों में प्रमुख है "नमक का दरोगा", "शतरंज के खिलाड़ी", "सत्याग्रह", "जुलूस", "बड़े घर की बेटी", "पंच परमेश्वर" आदि| प्रेमचंद अपनी कहानियों में जब दूसरे दौर की ओर चलते हैं तो उनका आदर्शवादी और सुधार वाद धीरे-धीरे जटिल यथार्थ की ओर मुड़ने लगता है| शुरुआती चरण में कहानियां अपने अंतिम चरण में युग परिवर्तन की घटना को दिखाती है लेकिन दूसरे दौर की कहानियों में क्रूर और अधिक  पैनापन होने लगता है| इन कहानियों में "सवा सेर गेहूं", "पूस की रात", "कफन", "बाबाजी का भोग", "सद्गति" जैसी कहानियां हैं| प्रेमचंद की कहानियों में सिर्फ कथानक के स्तर पर ही यथार्थ का वर्णन नहीं है, बल्कि शिल्प के स्तर पर भी यथार्थ मौजूद है| प्रेमचंद की कहानियों के कथानक में प्रेम प्रवाह, चरम सीमा में मार्मिकता, चित्रण की यथार्थता, भाषा की अभिव्यक्ति और  सादगी में पैनापन मौजूद है और शिल्प के स्तर पर भी  पैनापन देखा जा सकता है|
         प्रेमचंद का समय कहानी लेखन में 1916 से लेकर 1936 के बीच माना जाता है| उन्होंने अपने काल में लगभग 300 कहानियां लिखी हैं और यह कहानियां अपने आवरण, रूप रंग में प्रेमचंद के कथा शिल्प के क्रमिक विकास को दर्शाती है| प्रेमचंद के ही समानांतर सामाजिक यथार्थ को केंद्र में रखकर कई कहानीकार कहानियां लिखी हैं जैसे- विशंभर नाथ वर्मा कौशिक ने "ताई", "रक्षाबंधन", "विधवा" कहानी लिखी, सुदर्शन ने "हार की जीत", "सूरदास", "हेरा फेरी" कहानी लिखी, भगवती प्रसाद वाजपेई ने "मिठाई वाला", "निंदिया लाई" कहानी लिखी| यह कहानीकार यद्यपि प्रेमचंद के समान सामाजिक यथार्थ को केंद्र में रखकर कहानी लिखते थे लेकिन  इन्हें प्रेमचंद की तरह मानवीय संवेदना को उभारने में अधिक सफलता नहीं मिली, फिर भी इनकी कहानियां कलात्मक तौर पर पाठकों को प्रभावित करती हैं| इसी दौर में सरस्वती पत्रिका के समान ही इंदु पत्रिका प्रकाशित होती है इस पत्रिका में ही जयशंकर प्रसाद की पहली कहानी "ग्राम" प्रकाशित होती है| जयशंकर प्रसाद के अलावा इस पत्रिका में जी. पी. श्रीवास्तव, राजा राधिका रमण प्रसाद आदि कहानीकारों की कहानियां प्रकाशित होती हैं|
       जयशंकर प्रसाद की पहचान एक कवि के रूप में अधिक है कहानीकार के रूप में कम और कवि होने के कारण उनकी कहानियों में भावुकता और काव्यात्मक ता के दर्शन होते हैं| उन्होंने अपने कहानियों के माध्यम से देश प्रेम, भारतीय संस्कृति की गौरव गाथा, भारत की स्वर्णिम अतीत को पूर्ण गौरव और आदर्श के साथ प्रस्तुत किया| उन्होंने अपने कहानियों के द्वारा स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन को भी नई चेतना प्रदान की| उनकी कहानियों में "पुरस्कार", "सिकंदर की शपथ", "चित्तौड़ का उद्धार", "सालबत्ती" प्रमुख हैं| जयशंकर प्रसाद ने प्रेम और सौंदर्य को  केंद्र में रखकर भी कहानियां लिखी हैं- "तानसेन", "गुलाम", "जहांआरा", "रसिया बालम" जैसी कहानियां महत्वपूर्ण हैं| इसी प्रकार जयशंकर प्रसाद ने सामाजिक यथार्थ को केंद्र में रखकर "मधुवा" तथा "बिसाती" जैसी कहानियां भी लिखी हैं, किंतु उनकी कहानियों में विशेष तौर पर व्यक्तिवादी रचना दृष्टि के ही दर्शन होते हैं| वस्तुतः जयशंकर प्रसाद की धारा भाव वादी धारा है इस धारा के प्रमुख कहानीकार जयशंकर प्रसाद के अलावा चंडी प्रसाद, हृदयेश, वाचस्पति पाठक, रामकृष्ण दास, आचार्य चतुरसेन शास्त्री, मोहनलाल महतो हैं|
         प्रेमचंद के युग में पांडे बेचन शर्मा उग्र की चर्चा एक ऐसे कहानीकार के रूप में होती है जिन्होंने अपनी कहानियों के द्वारा समाज के  नग्न यथार्थ को प्रस्तुत किया| नग्न यथार्थ के कारण इनके साहित्य को अश्लील साहित्य और  घासलेटी साहित्य भी कहा गया, किंतु उग्र जी ने इन सब बातों की प्रवाह ना करते हुए युगीन सामाजिक, राजनीतिक जीवन पर करारा प्रहार किया है| उनकी कहानी की भाषा भी अत्यंत धारदार और सजीव है| उन्होंने अवैध संतान वेश्यावृत्ति, व्यभिचार, विधवाओं की स्थिति जैसे विषयों को बड़े ही  बेबाकी से उठाया है| इनकी प्रमुख कहानियों में "उसकी मां", "बलात्कार", "चिंगारी", "दोजक की आग" प्रमुख हैं|

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