सचेतन कहानी की बाद हिंदी में और अकहानी और सहज कहानी आंदोलन भी हुआ। कहानी के विभिन्न आंदोलनों ने साहित्य के विभिन्न मूल्यों में बांट दिया। और कहानी अपने मूल गंतव्य से हट गई उस यथार्थ को प्रस्तुत नहीं कर पा रही थी, जिसको लेकर कहानी ने अपनी विकास यात्रा प्रारंभ की थी। आठवीं दशक में कमलेश्वर ने सारिका पत्रिका का संपादन कार्य आरंभ किया उस दौर में लोग आंदोलन के गुट बंदी से आदि अजीज आ चुके थे। उस दौर में कमलेश्वर ने लोगों से वादों से मुक्त होकर कहानी लिखने की बात कहीं कहानी के संदर्भ में वे प्रतिबद्धता को भी नकार देते हैं। और यह भी आवाहन करते हैं कि यह समांतर कहानी पीढ़ी मुक्त कहानी होगी अर्थात सभी उम्र एवं विचारधारा के लोग एवं लेखा को को के साथ मंच साझा करने की बात कही गई। समांतर कहानी के केंद्र में आम आदमी के संघर्ष पूरी शिद्दत के साथ प्रस्तुत किया जाता है। समांतर कहानी नए मनुष्य एवं समाजवादी समाज की स्थापना के संदर्भ में आम आदमी की चिंता को अपने केंद्र में रखकर चलने की दावा प्रस्तुत करती है। यह वह दौर था, जब पूरे देश में जन आंदोलन हो रहे थे, इंदिरा गांधी एक तानाशाही सरकार भी चला रही थी और जन आंदोलन को कुचल रही थी, इसी दौर में जी पी का संपूर्ण क्रांति का आंदोलन भी हो रहा था, आम आदमी हाशिए पर पड़ चुका था। उसी दौर में कमलेश्वर सरिका पत्रिका के संपादकीय में लिखते हैं "इतिहास जब नंगा हो जाता है तो संपूर्ण संघर्ष के अलावा कोई विकल्प नहीं रह जाता है यह पूरा देश एक भयंकर दल बन चुका है और इसे दलदल बनाने वाले लोग परकोटो पर जाकर बैठ गए हैं और दलदल में फंस गए आम आदमी मरण का उत्सव मना रहे हैं " अपने संवेदनशीलता के माध्यम से कमलेश्वर क्रांति के लिए ये तैयार खड़े दुविधा रहित आम आदमी के बातचीत को कह रहे हैं ।समांतर कहानी आंदोलन में सारिका पत्रिका में समांतर कहानी विशेषांक प्रकाशित होता है इस विशेषांक में भीष्म साहनी के वांग्चु, हृदयेश की गुंजल्क, मणि मधुकर की विस्फोटक जैसी कहानियां प्रकाशित होती है। इस प्रकार कहानी में समांतर कहानी के आंदोलन शुरू हो जाता है इतना ही नहीं समांतर कहानी विशेषांक के रूप में विभिन्न भाषाओं की समांतर कहानी की विशेषांक निकाले गए। और साथ ही देशभर में समांतर कहानी पर गोष्ठी का आयोजन किया गया है। और समानांतर कहानी को अखिल भारतीय स्वरूप प्रदान करने का प्रयास किया गया। इन कहानियों का केंद्र बिंदु आम आदमी का जीवन संघर्ष है और मनुष्य नए युग के नए प्रश्नों का सामना कर रहा था यह मनुष्य जो संघर्ष रत्न है, नए मूल्यों की स्थापना के दिशा में भी प्रयासरत है। और इस आम आदमी के संघर्ष को संपूर्णता के साथ प्रस्तुत करना कि समांतर कहानी की सबसे बड़ी उपलब्धि मानी जाती है। इसके अन्य प्रमुख:- कहानीकार गोविंद मिश्र, जितेंद्र भाटिया, इब्राहिम शरीफ, हिमांशु जोशी, स्वदेश दीपक आदि| प्रमुख कहानियों में सतीश जायसवाल कि जाने किस बंदरगाह पर, कमलेश्वर की जोखिम, जितेंद्र भाटिया की शहादत नामा, पाल भसिम कि सौदा, जैसी कहानियां प्रमुख है। समांतर कहानी वास्तव में एक ऐसा आंदोलन था, जिसने भारतीय कथा साहित्य में पुनः आदमी को स्थापित कर दिया और कहानियों को आम आदमी के संघर्ष से जोड़कर नए तेवर एवं नए हलचल पैदा कर दिए।
सक्रिय कहानी
सक्रिय कहानी
No comments:
Post a Comment