Article

अकहानी

अकहानी
अकहानी नई कहानी की विद्रोह में जन्म लेने वाला एक आंदोलन था| नई कहानी की भोगे हुए यथार्थ एवं अनुभव की प्रमाणिकता जैसे नारों के विरुद्ध सशक्त करवाई होती है| उसे अकहानी में देखा जाता है| इस आंदोलन पर फ्रांस के एंटीस्टोरी का प्रभाव है| इसके साथ-साथ अस्तित्व वादी चिंतक के शास्त्र कामू के दर्शन का भी पर्याप्त प्रभाव दिखाई देता है|और अकहानी आंदोलन कथा के संं स्वीकृत आंदोलन का अस्वीकार कर देता है और इसमें बड़े ही तन्मयता के साथ मनुष्य की पीड़ा, कुंठा, अजनबी व्यर्थाताबोध को चित्रित किया गया है| और मनुष्य की यथार्थ चेतना को भी नए परिपेक्ष में परिभाषित करने का प्रयास किया गया है| वास्तव में यह वह दौर था जब पुराने जीवन मूल्य बिखरने लगे थे|आम आदमी की हताशा बढ़ने लगी थी| और रोजी रोटी की तलाश में जब वह हारता है तो कुंठित एवं शूद्र होने लगता है|वह दौर था जब हिंदी में अकविता की दौर भी शुरू होता है|
अकहानी के प्रमुख कहानीकार:- जगदीश चतुर्वेदी, राजकमल चौधरी, रवींद्र कालिया,ममता कालिया, दूधनाथ, मुद्राराक्षस आदि हैं| इन सभी कहानीकारों ने अपने समय के यथार्थ को पूरी तन्मयता के साथ प्रस्तुत किया है| और कहानियों में मनुष्य की पीड़ा, कुंठा मनुष्य के विघटन की त्रासदी, परेशानी को पूरी मार्मिकता के साथ अंकित किया है| यदि कहानी की दृष्टि से देखा जाए तो दूधनाथ सिंह की रक्तपात, श्रीकांत वर्मा की शव यात्रा, रवींद्र कालिया के सिर्फ एक दिन, राजकमल चौधरी की अग्नि स्थान ,एक अजनबी के लिए एक शाम जैसी कहानियां जैसी कहानियां प्रमुख हैं|
     अकहानी आंदोलन में मनुष्य के कुंठित काम को भी पूरी यथार्थाता के साथ प्रस्तुत किया| कहानीकारों ने काम विकृतियों को चित्रण करते हुए उन्मुक्त यौन संबंधों को भी वकालत की है| इस प्रकार के प्रमुख कहानीकार राजकमल चौधरी और जगदीश चतुर्वेदी हैं अकहानी की सबसे बड़ी सीमा यह भी मन जाती है| साहित्यकार कमलेश्वर धर्मयुग में ऎयासो प्रेत विद्रोह लिखते हैं| और उसमें कहते हैं कि हिंदी कहानी अपनी मूल्य से भटक गई है|अकहानी आंदोलन का शिल्पी भी अपने संवेदना के कारण एक विशिष्ट स्वरूप में उभरता है| इसमें जो नए प्रयोग किए गए वह लोगों को अपनी ओर  आकर्षित भी करता है| इन कहानियों में कथा तत्व न के बराबर है|और जिन कथा का वर्णन है, वह असत्य और व्योरबार है| इन कहानियों में सूक्ष्मता का तत्व अधिक है| और इसका सबसे बड़ा प्रभाव पड़ता है की कहानी उत्तरोत्तर जटिल होती जाती है| और कथा रस गायब हो जाता है|वस्तुतः कहानी आंदोलन अपनी सीमाओं के बावजूद अपने समय को प्रभावित करती है| और मनुष्य के अधिकार को आधार बनाकर साहित्य में आंदोलन के रूप में जन्म लेती है|

No comments:

Post a Comment

आलोचना को परिभाषित करें

 आलोचना का तात्पर्य है, किसी वस्तु, रचना या कृति का मूल्यांकन करना| किसी भी रचना को समझने के लिए आलोचना को समझना आवश्यक है| बिना आलोचना...