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नई कहानी


नई कहानी:-
      आजादी के बाद नई कहानी आंदोलन का जन्म होता है| इस आंदोलन में कहानी के परंपरागत प्रतिमान को नकार दिया और स्वयं के मूल्यांकन के लिए अपनी नई कसौटी तय की|  नई कहानी में नई शब्द कहानी से नई को अलग करने के लिए प्रयोग नहीं हुआ है| बल्कि यहां नई से तत्पर है- नई संवेदना, नई दृष्टि, नया शिल्प यदि नई कहानी आंदोलन के युगबोध को देखा जाए तो यह लगभग 19 से 50 से 60 के दौर को दर्शाता है| आजादी के बाद लोगों के मन में नए सपने थे उस समय देश में नए विश्वविद्यालयों की स्थापना हो रही थी, कल कारखानों की स्थापना हो रही थी, पंचवर्षीय योजनाओं के द्वारा देश की आर्थिक विकास की नीतियां तय की जा रही थी| यह वही दौर था जब कि समाज में मध्य वर्ग अपनी आकांक्षाओं को संजोकर आगे बढ़ना चाह रहा था| आजादी के बाद समाज में व्यापक परिवर्तन के फल स्वरुप पुराने रिश्तेदारीया टूट रही थी, परिवार का परंपरागत ढांचा ढह रहा था, स्त्री-पुरुष के संबंधों में भी बदलाव आ रहा था, दलितों और वंचितों में भी नई उम्मीदें जग रही थी| क्योंकि उन्हें सामान मताधिकार प्राप्त हुआ था, परंतु 1960 तक पहुंचते-पहुंचते पारिवारिक एवं सामाजिक संबंधों में बिखराव होने लगता है, ऐतिहासिकता से मोहभंग होने लगता है, मध्य वर्ग का जीवन कठिन हो जाता है, नैतिक व सामाजिक मूल्यों का पतन होने लगता है, यहां पंचशील सिद्धांत भी लगभग विफल होने लगता है| यह सभी नई कहानी का विषय बनते हैं| और कथानक में भी स्थूलता के स्थान पर सूक्ष्म तत्वों की प्रधानता होने लगती है| इसी प्रकार शिल्प के स्तर पर  प्रतीकात्मकता, सांकेतिकता, बिंबात्मकथा की प्रधानता होने लगती है नए कहानीकार अपने कहानी की मूल्यांकन की नई कसौटीया तय करते हैं| नामवर सिंह ने कहानी नई कहानी पुस्तक के माध्यम से इसे व्यापक कलेवर प्रदान किया|
इस युग के प्रमुख कहानीकार :- नई कहानी में प्रमुख रूप से राजेंद्र यादव, मोहन राकेश, और कमलेश्वर का नाम अधिक प्रसिद्ध है| यह आंदोलनकारी बदले हुए यथार्थ और नए अनुभव संबंधों की प्रमाणिक अभिव्यक्ति पर बल देते हैं| इनके अनुसार नए कहानीकारों ने परिवेश की विश्वसनीयता, अनुभूति की प्रमाणिकता और अभिव्यक्ति की ईमानदारी का प्रश्न उठाया है| और यह भी बताया है कि नई कहानी का मूल उद्देश्य पाठक को उसके समकालीन यथार्थ से परिचित करवाना है| नई कहानीकारों में फणीश्वर नाथ रेणु, हरिशंकर परसाई, भीष्म साहनी, उषा प्रियंवदा, धर्मवीर भारती, मनु भंडारी, निर्मला वर्मा, शैलेश मटियानी आदि हैं|इन कहानीकारों ने नई कहानी के आंदोलन में अपने युगीन यथार्थ की मार्मिक एवं प्रमाणिक अभिव्यक्ति की है| राजेंद्र यादव ने एक दुनिया समानांतर नामक पुस्तक का संपादन करके नई कहानी का प्रमाणिक संग्रह प्रस्तुत किया है| कुछ प्रमुख कहानियों:- में अमरकांत की जिंदगी और जोंक, उषा प्रियंवदा की मछलियां, मनु भंडारी की यही सच है, मोहन राकेश की एक और जिंदगी, राजेंद्र यादव की टूटना आदि प्रमुख हैं| नई कहानीकारों में फणीश्वर नाथ रेणु ने एक आंचलिक कथाकार के तौर पर अपनी पहचान  बनाई ह|  तो निर्मल वर्मा ने शहरी जीवन के अकेलेपन को संत्रास तथा कुंठा को अभिव्यक्त किया ह| इसी प्रकार अमरकांत ने शहरी मध्यवर्ग के सुख-दु:ख, शोषण तथा अन्याय को पूर्ण  मार्मिकता के साथ प्रस्तुत किया है|
     नई कहानी के बाद 1960 से 70 के बीच विभिन्न कहानी आंदोलनों का जन्म होता है| यह वह दौर था जब की नई कहानी के मूल्य और शिल्प अपनी चमक खोते जा रहे थे विभिन्न प्रकार की रूढ़ियों में फंसकर नई कहानी धीरे-धीरे निस्तेज होती जा रही थी| नई कहानी देश और समाज की असफलताओं कमियों को इस रूप में नहीं प्रकट कर पा रही थी| जिससे आम आदमी की पीड़ा सही रूप में व्यक्त हो सके सातवें दशक तक आते-आते पंचवर्षीय  योजनाएं एवं पंचशील सिद्धांत भी विफल हो चुके थे |राजनीति का स्तर पर नैतिकता और मर्यादा लगभग छीन-बिन हो चुके थे| दलों का टूटना बिखरना कुछ इस इस रूप में हो चुका था, जिससे राजनैतिक आदर्शों को भी प्रभावित करना शुरू किया| इस दौर में इसका प्रभाव साहित्य जगत पर भी पड़ता है| विभिन्न साहित्यकार भी अपने अपने घडो की लामबंदी करने लगते हैं| एक घड़ा घडा दूसरे घड़े को प्रभावित करने के लिए साहित्यिक गोष्टी का सहारा लेने लगते हैं| इस सबके बीच सातवें दशक में कई कहानी आंदोलन का जन्म होता है| जैसे- सचेतन कहानी, अकहानी कहानी, सहज कहानी आदि|

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