जनवादी कहानी
जनवादी कहानियों का दौर 1980 के बाद शुरू होता है। सन 1982 में दिल्ली में जनवादी लेखक संघ की स्थापना होती है। और इसकी स्थापना के बाद से इस कहानी आंदोलन की शुरुआत मानी जाती है किंतु यह भी ध्यान रखने की बात है कि, हिंदी साहित्य में जनवादी की अवधारणा कोई नई अवधारणा नहीं है। इसकी शुरुआत प्रकाश चंद्र गुप्त द्वारा 1933 में प्रकाशित अपनी पुस्तक "हिंदी साहित्य की जनवादी परंपरा" में कबीर से देखते हैं। बाद में इस परंपरा को हुए प्रेमचंद से भी जुड़ते हैं ।और वह कहते हैं कि प्रेमचंद ने 1936 में प्रगतिशील लेखक संघ की जब स्थापना करते हैं| तो उसकी मूल में जन ही था इस पृष्ठभूमि में प्रेमचंद के बाद निराला, यशपाल, रांगेय राघव, शेखर जोशी को रखते हैं। और इस आंदोलन को जो 1983 में खड़ा हुआ था, अचानक खड़ा हुआ आंदोलन नहीं मानते हैं ।जनवादी आंदोलन की पृष्ठभूमि को उस काल में होने वाले राजनीतिक स्थिति में देखा जा सकता है। कांग्रेस की पराजय होती है। जनता पार्टी की सरकार बनती है जनता पार्टी की सरकार एक व्यापक असंतोष का भी परिणाम थी। इस दौर में विभिन्न राज्यों में भी जन आकांक्षाओं के कारण गैर कांग्रेसी सरकार की गठन होती है। यह सरकार कांग्रेस के विरुद्ध खड़ा होकर अपनी सरकार तो बनाती है किन्तु वर्ग चरित्र के रूप में अलग नहीं थी। अपनी कार्यपद्धती में काफी हद तक शोषक वर्ग के पक्ष में कार्य करने वाली थी, और यही कारण है जनता की आआकांक्षाओं को पूरा नहीं कर पाती राजनीतिक रूप से गैर कांग्रेसी सरकार को सिर्फ इतना ही है उन्होंने राजनीति में कांग्रेसियों बर्चस्व तोड दिया। साहित्य के स्तर भी यह वह था जब की साहित्य कहानी जैसे आंदोलन आम आदमी के संघर्ष करके संघर्षशील चेतना और वर्ग सुधार के समुची अवधारणा को दूधलाने की कोशिश कर रहे थे। और इसी पृष्ठभूमि में जनवादी लेखक संघ की स्थापना होती है। जनवादी आंदोलन करने का स्वर प्रदान करने का उस दौर के पत्रिका में भी हो रहा था, कोलकाता से कलम, दिल्ली से कथन, मथुरा से उतार्ध, रतलाम से कंक पत्रिका जनवादी कहानी पर चर्चा करना शुरू कर दिए थे। जनवादी का वैचारिक आधार मार्क्सवादी है और अपने मूल प्रकृति में यह जन सम्मान की संघर्ष की पक्षधर है। यह संघर्ष बहूयानी है और जनवादी कहानी में संघर्षरत पात्र अपने अधिकारों को लेकर पूरी तरह से सहज है। संघर्ष की स्थिति में वह निर्णय ले सकता है और अंतिम दम तक संघर्ष करता है। जनवादी कहानी में सर्वाधिक बल सर्वहारा वर्ग एवं मध्यम वर्ग द्वारा किए जा रहे शोषण विरोधी दल पर है। जनवादी कहानियों में जन समस्याओं को सीधी सहज भाषा में सहज शिल्प के साथ प्रस्तुत किया जाता है। जनवादी कहानीकार पूंजीपति वर्ग के कुचक्र और शोषण वर्ग को बेनकाब करता है। और हाशिए पर पड़े मेहनतकश आदमी को निर्णायक संघर्ष के लिए प्रेरित करता है। जनवादी कहानीकार जन संघर्ष को पूरी ईमानदारी के साथ प्रस्तुत करने पर बल देता है। जनवादी परंपरा के प्रमुख कहानीकार असगर वजाहत, उदय प्रकाश, नमिता सिंह, स्वयं प्रकाश, रमेश बत्रा आदि हैं। प्रमुख कहानियों में असगर वजाहत की मछलियां, स्वयं प्रकाश की सूर्य कब निकलेगा, रमेश बत्रा की जिंदा होने के खिलाफ, विजयकांत की ब्रह्मफांस, उदय प्रकाश की मोसा जैसी कहानियों को देखा जा सकता है।
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