संस्मरण का तात्पर्य यह है, कि सम्यक प्रकार से स्मरण करना अर्थात किसी भी स्मरणीय व्यक्ति या घटना को भली-भांति याद किया जाता है| यहां पर स्मरणीय व्यक्ति के साथ आत्मपरक एवं व्यक्तिगत संबंध होना आवश्यक है इसीलिए संस्मरण आत्मपरक होता है|
संस्मरण आधुनिक गध विधा है, हिंदी में इसका आरंभ द्विवेदी युग से प्रारंभ होता है "सरस्वती पत्रिका" में संस्करण का प्रकाशन होता रहता था साथ ही हिंदी की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में भी संस्मरण छपते रहते थे| हिंदी का पहला संस्करण 1907 में बालमुकुंद गुप्त द्वारा प्रताप नारायण मिश्र पर लिखा गया था इसके बाद बालमुकुंद गुप्त ने हरिऔध जी के संस्करण नाम से भी संस्मरण लिखा है|
यदि देखा जाए तो 20 वीं सदी के प्रथम, द्वितीय व तृतीय दशक में संस्मरण विधा स्थापित होने लगती है| इस संस्करण में उस समय के सामाजिक,राजनैतिक एवं साहित्यिक जीवन के बारे में जानकारी मिलने लगती है| महादेवी वर्मा ने पथ के साथी में अपने समकालीन लेखकों के संस्मरण लिखा है जिसमें पंत, निराला, सुभद्रा कुमारी चौहान, मैथिली शरण गुप्त के संस्मरण है|
संस्मरण आधुनिक गध विधा है, हिंदी में इसका आरंभ द्विवेदी युग से प्रारंभ होता है "सरस्वती पत्रिका" में संस्करण का प्रकाशन होता रहता था साथ ही हिंदी की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में भी संस्मरण छपते रहते थे| हिंदी का पहला संस्करण 1907 में बालमुकुंद गुप्त द्वारा प्रताप नारायण मिश्र पर लिखा गया था इसके बाद बालमुकुंद गुप्त ने हरिऔध जी के संस्करण नाम से भी संस्मरण लिखा है|
यदि देखा जाए तो 20 वीं सदी के प्रथम, द्वितीय व तृतीय दशक में संस्मरण विधा स्थापित होने लगती है| इस संस्करण में उस समय के सामाजिक,राजनैतिक एवं साहित्यिक जीवन के बारे में जानकारी मिलने लगती है| महादेवी वर्मा ने पथ के साथी में अपने समकालीन लेखकों के संस्मरण लिखा है जिसमें पंत, निराला, सुभद्रा कुमारी चौहान, मैथिली शरण गुप्त के संस्मरण है|
Nice jankari
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार ०४ सितम्बर २०२१ को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
ReplyDelete