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लोकवादी आलोचना को बताये


        जिस आलोचना पद्धति में आलोचक लोक धर्म, लोकमंगल, लोक मर्यादा आदि प्रतिमानो को आधार बनाकर आलोचना के प्रतिमान स्थापित करता है, उसे लोक वादी समीक्षक कहा जाता है| इन आधारों एवं इन कसौटीयो पर ही आलोचक सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक आलोचना करता है| इस पद्धति के प्रमुख आलोचक आचार्य रामचंद्र शुक्ल हैं उनकी रचना "लोकमंगल की साधना अवस्था एवं लोकमंगल की सीधा अवस्था" है| आचार्य रामचंद्र शुक्ल उन्हीं प्रतिमनो के कारण लोकवादी समीक्षक कहे जाते हैं|

आलोचना को परिभाषित करें

 आलोचना का तात्पर्य है, किसी वस्तु, रचना या कृति का मूल्यांकन करना| किसी भी रचना को समझने के लिए आलोचना को समझना आवश्यक है| बिना आलोचना...